Pitru Paksha Ki Sampurn Jankari - Shradh Paksha Tarpan vidhi
Pitru Paksha Ki Sampurn Jankari-Shradh Paksha
Tarpan क्या है? हमारे हिन्दू शास्त्र में एक श्लोक है। पितृ देव भव अर्थात
हमारे जो पितृ है। वो देव के समान देवता है। जो हमारे पूर्वज या पितृ हमारे कुल की
रक्षा करते है। और हमे खुशाल जीवन का आर्शीवाद देते है।
पितृ पक्ष हमारे हिन्दू पंचांग
के अनुसार अश्विन मास के कृष्ण पक्ष की पुर्णिमा से प्रारम्भ होता है और अमावस्या
पे समापन हो जाता है।
यही पितृ पक्ष के समय में
हमारे पूर्वजो की आत्मा की शांति के लिये जो श्राद्ध किया जाता है। पितृ पक्ष 16
दिनो का होता है। 16 दिनो में तिथि के अनुसार श्राद्ध किया जाता है।
Pitru Paksha |
अर्थात वयक्ति की जिस तिथि पे
मृत्यु हुई हो उसी पितृ पक्ष की तिथि को श्राद्ध किया जाता है। श्राद्ध की 16 तिथि
है पुर्णिमा, प्रतिपदा, द्वितीया, तृतीया, चतृथ्री, पंचमी, षष्टि, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतृद्शी, और अमावस्या
चाहे कृष्ण
पक्ष या शूकल पक्ष तिथि में वयक्ति की मृत्यु हुई हो श्राद्ध का दिन इसी तिथि के
अनुसार यानि जिस दिन वयक्ति की मृत्यु हुई हो उस तिथि को श्राद्ध करने का विधान
है।
१ प्रतिपदा को नाना-नानी का
श्राद्ध कर सकते है अगर नाना-नानी का कोई पुत्र ना हो तो उनका श्राद्ध बेटी या
उसके पुत्र भी कर सकते है।
२ जिस वयक्ति की मृत्यु
अविवाहित अवस्था मे हुई है उनके लिए पंचमी तिथि को श्राद्ध किया जाता है।
३ नवमी तिथि को माता, सोभाग्यवती स्त्री, जिन महिला की मृत्यु की
तिथि मालूम न हो वो सभी स्त्री का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है। पितृ पक्ष
की नवमी तिथि को मातृ नवमी भी कहते है।
४ एकादशी तिथि में सन्यास
लेने वाले वयक्ति का श्राद्ध किया जाता है।
५ जिसकी मृत्यु अकाल में होती
है यानि जल में डूबने से, शस्त्र से, जहर खाने से यानि आपघात से हो उन लोगो का श्राद्ध चतुर्दशी
को किया जाता है।
६ कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी
तिथि को बच्चो का श्राद्ध किया जाता है।
७ सर्वपितृ अमावस्या को यानि
पितृ पक्ष की अमावस्या को सभी पितृ का श्राद्ध किया जाता है। चाहे ज्ञात-अज्ञात
सर्व पितृ का श्राद्ध करने की परंपरा है।
बाकी तिथि जो बचती है उसमे जिस
दिन वयक्ति की मृत्यु हुई हो उस तिथि को श्राद्ध करने की परंपरा है।
पितृपक्ष और श्राद्ध के तर्पण के विषय में जानकारी देने का प्रयास किया
है। जो हमारा हिन्दू शास्त्र और भारतीय परंपरा के अनुसार आइए विस्तृत रुप से पितृपक्ष और श्राद्ध के तर्पण के विषय में जानने का प्रयास करते हैं।
Pitru Paksha ki jankari |
पितृ में अर्यमा
श्रेष्ठ है। अर्यमा पितृत के देव हैं। अर्यमा को प्रणाम। हे! पिता,
पितामह, और प्रपितामह। हे! माता, मातामह और प्रमातामह आपको भी बारम्बार प्रणाम। आप हमें
मृत्यु से अमृत की तरफ ले चलें।
तर्पण विधि
तर्पण के प्रकार कुछ इस
प्रकार है। पितृतर्पण, मनुष्यतर्पण, देवतर्पण, भीष्मतर्पण, मनुष्यपितृतर्पण, और यमतर्पण
प्रात:काल संध्योपासना करने बाद
बायें और दायें हाथ की अनामिका अंगुली मे पवित्रे स्थो वैष्णव्यों मंत्र का उचारण करते
हुए पवित्री धारण कीजिये। फिर हाथ में त्रिकुश, यव, अक्षत और सुध्ध
जल लेकर तर्पण करे
नीचे दिए गए मंत्र का उचारण करे
1 देवतर्पण
ॐ ब्रह्मास्तृप्यताम् ।, ॐ
विष्णुस्तृप्यताम् ।, ॐ रुद्रस्तृप्यताम् ।,ॐप्रजापतिस्तृप्यताम् ।
ॐ देवास्तृप्यन्ताम् ।,ॐ छन्दांसि
तृप्यन्ताम् ।, ॐ वेदास्तृप्यन्ताम् ।,ॐ ऋषयस्तृप्यन्ताम् ।
ॐ पुराणाचार्यास्तृप्यन्ताम्
।, ॐ गन्धर्वास्तृप्यन्ताम्
।,ॐ
इतराचार्यास्तृप्यन्ताम् ।
ॐ संवत्सररू सावयवस्तृप्यताम्
।, ॐ
देव्यस्तृप्यन्ताम् ।, ॐ अप्सरसस्तृप्यन्ताम् ।
ॐ देवानुगास्तृप्यन्ताम् ।, ॐ
नागास्तृप्यन्ताम् ।, ॐ सागरास्तृप्यन्ताम् ।
ॐ पर्वतास्तृप्यन्ताम् ।, ॐ
सरितस्तृप्यन्ताम् ।, ॐ मनुष्यास्तृप्यन्ताम् ।
ॐ यक्षास्तृप्यन्ताम् ।, ॐ रक्षांसि
तृप्यन्ताम् ।, ॐ पिशाचास्तृप्यन्ताम् ।
ॐ सुपर्णास्तृप्यन्ताम् ।, ॐ भूतानि
तृप्यन्ताम् ।, ॐ पशवस्तृप्यन्ताम् ।
ॐ वनस्पतयस्तृप्यन्ताम् ।, ॐ
ओषधयस्तृप्यन्ताम् ।,ॐ भूतग्रामश्चतुर्विधस्तृप्यताम् ।
अचानक धन प्राप्ति के लिए अचूक टोटका
अचानक धन प्राप्ति के लिए अचूक टोटका
इसी प्रकार नीचे दिये गये मंत्र
से मरीचि आदि ऋषियों को भी एक-एक अञ्जलि जल दें
ॐ मरीचिस्तृप्यताम् ।, ॐ
अत्रिस्तृप्यताम् ।,ॐ अङ्गिरास्तृप्यताम् ।
ॐ पुलस्त्यस्तृप्यताम् ।, ॐ
पुलहस्तृप्यताम् ।, ॐ क्रतुस्तृप्यताम् ।
ॐ वसिष्ठस्तृप्यताम् ।, ॐ
प्रचेतास्तृप्यताम् ।, ॐ भृगुस्तृप्यताम् ।, ॐ
नारदस्तृप्यताम् ॥
3 मनुष्यतर्पण
उत्तर दिशा की तरफ मुँह कर,
जनेऊ व् गमछे को माला की तरह गले में धारण कर लीजिये, आसान पर सीधा बैठ
कर निचे दिये गये मंत्र को दो-दो बार उचारण
करते हुए दिव्य मनुष्यों के लिये प्रत्येक को दो-दो अञ्जलि जौ सहित जल कनिष्ठिका
के मूला-भाग से अर्पण करें
ॐ सनकस्तृप्यताम्। , ॐ
सनन्दनस्तृप्यताम्। , ॐ सनातनस्तृप्यताम्।
ॐ कपिलस्तृप्यताम्। , ॐ
आसुरिस्तृप्यताम्। , ॐ वोढुस्तृप्यताम्।
ॐ पञ्चशिखस्तृप्यताम्
4 पितृतर्पण
दोनों हाथ के अनामिका में
धारण किये पवित्री व त्रिकुशा को निकाल कर रख दे, अब दोनों
हाथ की तर्जनी अंगुली में नया पवित्री धारण कर मोटक नाम के कुशा के मूल और अग्रभाग
को दक्षिण की ओर करके अंगूठे और तर्जनी के बीच में रखे,
स्वयं दक्षिण की ओर मुँह करे, बायें घुटने को जमीन पर लगाकर जनेऊ को दायें कंधेपर रखकर बाँये हाथ जे नीचे ले जायें पात्रस्थ जल में काला तिल मिलाकर अंगुठा और तर्जनी के मध्यभाग से दिव्य पितरों के लिये निचे दिये गये मंत्र को पढते हुए तीन बार अञ्जलि जल दें
स्वयं दक्षिण की ओर मुँह करे, बायें घुटने को जमीन पर लगाकर जनेऊ को दायें कंधेपर रखकर बाँये हाथ जे नीचे ले जायें पात्रस्थ जल में काला तिल मिलाकर अंगुठा और तर्जनी के मध्यभाग से दिव्य पितरों के लिये निचे दिये गये मंत्र को पढते हुए तीन बार अञ्जलि जल दें
ॐ कव्यवाडनलस्तृप्यताम् इदं
सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम:।
ॐ सोमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं
गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम:।
ॐ यमस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं
गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम:।
ॐ अर्यमा तृप्यताम् इदं सतिलं
जलं गङ्गाजलं वा) तस्मै स्वधा नम:।
ॐ अग्निष्वात्ता:
पितरस्तृप्यन्ताम् इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तेभ्य: स्वधा नम:।
ॐ सोमपा: पितरस्तृप्यन्ताम्
इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तेभ्य: स्वधा नम:।
ॐ बर्हिषद: पितरस्तृप्यन्ताम्
इदं सतिलं जलं गङ्गाजलं वा) तेभ्य: स्वधा नम:।
5 यमतर्पण
यहि प्रकार निचे दिये गये मंत्र
को पढते हुए चौदह यमों के लिये भी पितृतीर्थ से ही तीन-तीन बार अञ्जलि तिल सहित जल
दें
ॐ यमाय नम:, ॐ धर्मराजाय
नम:, ॐ
मृत्यवे नम:, ॐ अन्तकाय नम:,
ॐ वैवस्वताय नमः, ॐ कालाय नम:, ॐ
सर्वभूतक्षयाय नम:, ॐ औदुम्बराय नम:,
ॐ दध्नाय नम:, ॐ नीलाय नम:, ॐ
परमेष्ठिने नम:, ॐ वृकोदराय नम:
ॐ चित्राय नम:, ॐ
चित्रगुप्ताय नम:।।
6 मनुष्यपितृतर्पण
अब इसके बाद
निचे दिये गये मंत्र को से पितृ का आवाहन करें।
ॐ आगच्छन्तु मे पितर एवं
ग्रहन्तु जलान्जलिम'
ॐ हे पितरों! पधारिये तथा
जलांजलि ग्रहण कीजिए।
अपने पितृगणों का नाम-गोत्र
आदि उच्चारण करते हुए प्रत्येक के लिये पूर्वोक्त विधि से ही तीन-तीन अञ्जलि तिल के
साथ जल दें
अस्मत्पिता अमुकशर्मा वसुरूपस्तृप्यतांम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा
नम:
अस्मत्पितामह: अमुकशर्मा
रुद्ररूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नम:
अस्मत्प्रपितामह: अमुकशर्मा
आदित्यरूपस्तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्मै स्वधा नम:
अस्मन्माता अमुकी देवी
वसुरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं तस्यै स्वधा नम:
अस्मत्पितामही अमुकी
देवी रुद्ररूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जलं
तस्यै स्वधा नम:
अस्मत्प्रपितामही अमुकी देवी
आदित्यरूपा तृप्यताम् इदं सतिलं जल तस्यै स्वधा नम:
नौ बार पितृतीर्थ से जल छोड़े।
सव्य होकर पूर्वाभिमुख हो निचे
दिये गये मंत्र को पढते हुए जल गिराये
देवासुरास्तथा यक्षा नागा
गन्धर्वराक्षसा: ।
पिशाचा गुह्यका: सिद्धा:
कूष्माण्डास्तरव: खगा: ॥
जलेचरा भूमिचराः
वाय्वाधाराश्च जन्तव: ।
प्रीतिमेते प्रयान्त्वाशु
मद्दत्तेनाम्बुनाखिला: ॥
नरकेषु समस्तेपु यातनासु च ये
स्थिता: । तेषामाप्ययनायैतद्दीयते सलिलं मया ॥
येऽबान्धवा बान्धवा वा येऽन्यजन्मनि बान्धवा: ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु ये चास्मत्तोयकाङ्क्षिण:
ॐ आब्रह्मस्तम्बपर्यन्तं
देवषिंपितृमानवा: ।
तृप्यन्तु पितर: सर्वे
मातृमातामहादय: ॥
अतीतकुलकोटीनां
सप्तद्वीपनिवासिनाम् ।
आ ब्रह्मभुवनाल्लोकादिदमस्तु
तिलोदकम् ॥
येऽबान्धवा बान्धवा वा
येऽन्यजन्मनि बान्धवा: ।
ते सर्वे तृप्तिमायान्तु मया
दत्तेन वारिणा ॥
इसके बाद वस्त्र को चार आवृत्ति लपेटकर जल में डुबावे और
बाहर ले आकर दिये गये मंत्र को
“ये के चास्मत्कुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृतारू । ते गृह्णन्तु मया दत्तं वस्त्रनिष्पीडनोदकम् ”
को पढते हुए अपने बाएँ भाग में भूमिपर उस वस्त्र को निचोड़े। पवित्रक को तर्पण किये हुए जल मे छोड दे । यदि घर में किसी मृत पुरुष का वार्षिक श्राद्ध आदि कर्म हो तो वस्त्र-निष्पीडन नहीं करना चाहिये ।
“ये के चास्मत्कुले जाता अपुत्रा गोत्रिणो मृतारू । ते गृह्णन्तु मया दत्तं वस्त्रनिष्पीडनोदकम् ”
को पढते हुए अपने बाएँ भाग में भूमिपर उस वस्त्र को निचोड़े। पवित्रक को तर्पण किये हुए जल मे छोड दे । यदि घर में किसी मृत पुरुष का वार्षिक श्राद्ध आदि कर्म हो तो वस्त्र-निष्पीडन नहीं करना चाहिये ।
7 भीष्मतर्पण
दक्षिणाभिमुख हो पितृतर्पण की तरह निचे दिये गये मंत्र का उचारण करे
“वैयाघ्रपदगोत्राय
साङ्कृतिप्रवराय च ।
गङ्गापुत्राय भीष्माय
प्रदास्येऽहं तिलोदकम् ।
अपुत्राय ददाम्येतत्सलिलं
भीष्मवर्मणे ॥”
फिर शुद्ध जल से आचमन करके
प्राणायाम करे । इसके बाद यज्ञोपवीत सव्य कर एक पात्र में शुद्ध जल भरकर उसमे
श्वेत चन्दन, अक्षत,
पुष्प तथा तुलसीदल छोड दे।
फिर दूसरे पात्र में चन्दन् से षडदल-कमल बनाकर उसमें पूर्वादि दिशा के क्रम से ब्रह्मादि देवताओं का आवाहन-पूजन करे तथा पहले पात्र के जल से उन पूजित देवताओं के लिये अर्ध्य अर्पण करे।
फिर दूसरे पात्र में चन्दन् से षडदल-कमल बनाकर उसमें पूर्वादि दिशा के क्रम से ब्रह्मादि देवताओं का आवाहन-पूजन करे तथा पहले पात्र के जल से उन पूजित देवताओं के लिये अर्ध्य अर्पण करे।
अर्ध्यदान के लिए निचे दिये गये
मंत्र का उचारण करे
ॐ ब्रह्म जज्ञानं प्रथमं
पुरस्ताद्वि सीमत: सुरुचो व्वेन आव:। स बुध्न्या उपमा अस्य व्विष्ठा: सतश्च
योनिमसतश्व व्विव:॥ ॐ ब्रह्मणे नम:। ब्रह्माणं पूजयामि ॥
ॐ इदं विष्णुर्विचक्रमे
त्रेधा निदधे पदम् । समूढमस्यपा, सुरे स्वाहा ॥
ॐ विष्णवे नम: । विष्णुं
पूजयामि ॥
ॐ नमस्ते रुद्र मन्यव उतो त इषवे नम: । वाहुब्यामुत ते नम: ॥ ॐ रुद्राय नम: । रुद्रं पूजयामि ॥
ॐ तत्सवितुर्व रेण्यं भर्गो
देवस्य धीमहि ।
धियो यो न: प्रचोदयात् ॥ ॐ
सवित्रे नम: ।
सवितारं पूजयामि ॥
ॐ मित्रस्य चर्षणीधृतोऽवो देवस्य
सानसि । द्युम्नं चित्रश्रवस्तमम् ॥ ॐ मित्राय नम:। मित्रं पूजयामि ॥
ॐ इमं मे व्वरूण श्रुधी
हवमद्या च मृडय । त्वामवस्युराचके ॥ ॐ
वरुणाय नम: । वरूणं पूजयामि ॥
फिर भगवान सूर्य को अघ्र्य
दें
एहि सूर्य सहस्त्राशों तेजो
राशिं जगत्पते। अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणाघ्र्य दिवाकरः।
हाथों को उपर कर मंत्र पढ़ें
चित्रं देवाना मुदगादनीकं
चक्षुर्मित्रस्य वरूणस्याग्नेः। आप्राद्यावा पृथ्वी अन्तरिक्ष
सूर्यआत्माजगतस्तस्थुशश्च।
इसके बाद परिक्रमा करते हुए
दशों दिशाओं में नमस्कार करें। निचे दिये गये मंत्र को पढे
ॐ प्राच्यै इन्द्राय नमः। ॐ
आग्नयै अग्नयै नमः। ॐ दक्षिणायै यमाय नमः।
ॐ नैऋत्यै नैऋतये नमः। ॐ पश्चिमायै वरूणाय नमः। ॐ वायव्यै वायवे नमः।
ॐ उदीच्यै कुवेराय नमः। ॐ ऐशान्यै ईशानाय नमः। ॐ ऊध्र्वायै ब्रह्मणै नमः।
ॐ अवाच्यै अनन्ताय नमः।
ॐ नैऋत्यै नैऋतये नमः। ॐ पश्चिमायै वरूणाय नमः। ॐ वायव्यै वायवे नमः।
ॐ उदीच्यै कुवेराय नमः। ॐ ऐशान्यै ईशानाय नमः। ॐ ऊध्र्वायै ब्रह्मणै नमः।
ॐ अवाच्यै अनन्ताय नमः।
इस प्रकार से दिशाओं और
देवताओं को नमस्कार कर बैठकर निचे दिये गये मंत्र को पुनः देवतीर्थ से तर्पण करें।
ॐ ब्रह्मणै नमः। ॐ अग्नयै
नमः। ॐ पृथिव्यै नमः। ॐ औषधिभ्यो नमः।
ॐ वाचे नमः। ॐ वाचस्पतये नमः। ॐ महद्भ्यो नमः। ॐ विष्णवे नमः।
ॐ अद्भ्यो नमः। ॐ अपांपतये नमः। ॐ वरूणाय नमः।
ॐ वाचे नमः। ॐ वाचस्पतये नमः। ॐ महद्भ्यो नमः। ॐ विष्णवे नमः।
ॐ अद्भ्यो नमः। ॐ अपांपतये नमः। ॐ वरूणाय नमः।
इसके बाद तर्पण के जल को मुख
पर लगायें और तीन बार ॐ अच्युताय नमः मंत्र का जप करें।
इस तरह तर्पण का समापन करते हुए
अपने कर्मो को भगवान को समर्पित करे पितृ के आर्शीवाद से आपके जीवन को खुशाहाली से
भर जाएंगी।
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